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बदल रहल बा बिहार

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बदल रहल बा बिहार..... सीवान स्टेशन पर उतरने से पहले...और उससे पहले भी...घर-दुकानों की दीवारों पर आपको विज्ञापनों की भरमार दिखाई देती है..कभी वक्त था जब इन दीवारों पर दाद-खाज-खुजली और बवासिर से छुटकारा दिलाने की दवाओं के अलावा बंगाली हकीम और हकीम सुलेमान के नाम सुनहरे अक्षरों में दिखाई देते थे...थोड़ा उन्नत विज्ञापन हुआ तो सीमेंट या टूथपेस्ट की शान में कसीदे लिखे दिखाई देते थे...लेकिन वो विज्ञापन बदल गये हैं...ठीक बिहार की तरह... खुजली दूर करने के विज्ञापनों की जगह अमित सर के फिजिक्स क्लासेस ने ली है..फलां सीमेंट खरीदने के लाभ गिनाने की जगह अब जेईई मेन्स क्लियर करने के लिए किसी मोहन सर के मैथ्स ट्यूशन की बातें हैं। बिहार के दूर-दराज ग्रामीण इलाकों में वाकई में बदलाव दिखता है। पढ़ने-लिखने का जुनून बढ़ा है। दीवारों पर लिखी विज्ञापन की इबारतें, यूं तो अपने-आप में कोई श्वेत पत्र नहीं जिसकी निशानदेही पर बदलाव के बयार की पुष्टि की जा सके लेकिन, ये जनमानस के बदलते रवैये का जमीनी स्तर के दस्तावेज हैं। इसे कोई ठुकरा नहीं सकता।  गाँवों में भी परिवर्तन दिखता है। पढ़ाई का क्रेज बढ़ा है। ऐसा बिल्कुल
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 हिंदुओं को लुभाने की कोशिश में ममता  गत वर्ष लोकसभा चुनाव में बंगाल की 42 सीटों में से भाजपा ने अभूतपूर्व 18 सीटों पर कब्जा किया था और तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिलीं थीं। नतीजों के बाद से ही राज्य में सत्ता परिवर्तन की हलचल मचनी शुरू हो गई थी। तृणमूल के कई नेताओं ने भाजपा का दामन भी थाम लिया। हालांकि वक्त गुजरने के साथ ही तृणमूल ने अपनी स्थिति को मजबूत किया और उपचुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर की संभावना जतायी जा रही है। तृणमूल के साथ अब चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी हैं। बताया जाता है कि पिछले कुछ महीनों से कमोबेश सभी सरकारी कदमों के संबंध में पीके(प्रशांत किशोर) सलाह दे रहे हैं।  अब तक ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगते रहे हैं। यह भी देखा गया है कि हिंदीभाषी इलाकों में भाजपा की पकड़ मजबूत रही है। लिहाजा अब स्थिति को बदलने के लिए ममता बनर्जी ने कमर कस ली है। ममता बनर्जी व राज्य सरकार की छवि को बदलने के लिए जम कर काम किया जा रहा है।  इस दिशा में गरीब सनातनी पंडितों को मासिक हजार रुपये के भत्ते की घोषणा की

चीन का मसलाः नकाब के पीछे छिपे चेहरों को बेनकाब करता

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चीन का मसलाः नकाब के पीछे छिपे चेहरों को बेनकाब करता  लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी हिमाकत के कुछ दिन बीत चुके हैं. हालांकि इन चंद दिनों में ही इस घटना ने भारत में नकाब के पीछे कई चेहरों को उजागर किया है. हालात को देख कर अचंभित हुए बिना नहीं रहा जा सकता. नकाब के पीछे छिपे चेहरों को देखने के लिए काफी दूर जाने की जरूरत नहीं है. इन्हें व्हाट्सऐप, फेसबुक या फिर टीवी के परदे पर ही देखा जा सकता है. क्या विरोध के स्वर को कुचला जा रहा है? एक आरोप लगता है कि अपनी ही सेना या सरकार या फिर देश पर उंगली उठाने वालों का विरोध करना, विरोध के स्वर को कुचलने की कोशिश है. यह कहा जाता है कि बोलने की आजादी छीनी जा रही है, कंठ अवरुद्ध किया जा रहा है. तो इसका जवाब है नहीं...वक्त की जरूरत जब समूचे देश को एकजुट होने की होती है तब ऐसे हालात में भारतीय सेना, भारतीय विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के बयान पर उंगली उठाना, कोई और कहानी कहता है. काउंटर आरोप यह लगता है कि यह सबकुछ राजनीति से प्रेरित है. भारत सरकार पर आत्मसमर्पण करने का आरोप लगाने के पीछे दरअसल सत्ता की लालसा ही है. एक नेता को तो मानों मसला ही

चीन को आर्थिक तरीके से चोट पहुंचाने की तैयारी

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चीन को आर्थिक तरीके से चोट पहुंचाने की तैयारी   गलवान घाटी में चीन की हिमाकत से समूचे देश में नाराजगी का आलम है. यह नाराजगी अब व्यापारियों मे भी देखी जा रही है. व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन कन्फेडेरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स एसोसिएशन ने भारतीय बाजार में चीन के दबदबे को कम करने के लिए ठोस रणनीति बना ली है.  कन्फेडेरेशन के बंगाल चैप्टर के चेयरमैन सुभाष चंद्र अग्रवाल ने कहा कि चीन से भारत में आयात होने वाले उत्पाद 5.25 लाख करोड़ रुपये का है. कन्फेडेरेशन के साथ देश के सात करोड़ व्यापारी सदस्य जुड़े हैं. यह कोशिश की जा रही है कि अगले डेढ़ वर्षों में आयात को कम से कम एक लाख करोड़ रुपये तक कम किया जाये.  श्री अग्रवाल कहते हैं कि यह कटौती व्यापारियों के जरिये ही की जा सकती है. जब व्यापारी ही सामान आयात नहीं करेंगे तो बाजार में मिलेगें कैसे. लेकिन यह एकाएक नहीं हो सकता. इसके लिए वक्त की जरूरत है. ऐसे उत्पादों का चीन से आयात बंद किया जायेगा जिनका भारतीय विकल्प मौजूद है.  भले भारतीय उत्पाद 10-15 फीसदी महंगा होगा लेकिन उसकी गुणवत्ता अच्छी होगी. चीनी सामान फौरी तौर पर भले सस

चीन के दांत‌ तोड़ने की जरूरत

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गलवान घाटी में हुई घटना ने एक बार फिर चीन को ठोस जवाब देने की जरूरत को शिद्दत से सामने रखा है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान की बनिस्बत जब चीन के दुस्साहस की बात होती है तो कहीं न कहीं हम बातचीत और शांति की सोचने लगते हैं. पूर्व में ऐसी कई घटनाएं हुईं हैं जब चीनी सैनिक भारत की सीमा में घुस आते हैं और भारतीय सैनिकों के साथ झड़प में जुट जाते हैं. कभी यह झड़प, धक्का मुक्की तो तो कभी पत्थरबाज़ी में तब्दील हो जाती है. वर्तमान में चीन भारतीय सीमा के भीतर सड़क बनाने से तिलमिलाया है. वह इस बात को मानने को तैयार नहीं कि भारत सीमा के पास सड़क बनाएं जिससे भारत को सामरिक फायदा हो. इसलिए वह रह रहकर दुस्साहस करता है. लेकिन सवाल उठता है कि चीन के पत्थर और हाथापाई का जवाब भारत गोली से क्यों नहीं देता? वह आखिर क्यों संयम दिखाता रहा है. रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि चुप रहने से चीन का दुस्साहस लगातार बढ़ता जा रहा है. अगर पत्थर, कंटीले रॉड से ही लड़ना है तो क्या जरूरत है इतने बड़े रक्षा बजट की? गलवान में भारतीय सैनिकों ने करीब 45 चीनी सैनिकों को हताहत किया, गन की छूट रहती तो संख्या 450 रहती.

फेक न्यूज का बाजार

फेक न्यूज का बाजार  भारत में खबरों के बाजार में तेजी से बदलाव आया है. खबरों के बीच में से असली खबरें चुनना भी एक कला है. हर ओर एजेंडा नजर आता है. लेकिन वो बातें फिर कभी. जो चलन भयावह तरीके से सामने आ रहा है वह है न्यूज चैनलों के लोगो(Logo )  का इस्तेमाल करके मनमाफिक फर्जी खबरों को वायरल करना. आम तौर पर सोशल मीडिया में इसका अधिक इस्तेमाल देखा जा रहा है. व्हाट्सऐप और फेसबुक के जरिये इन्हें वायरल किया जाता है. लेकिन हकीकत क्या है इसके पीछे...कौन लोग हैं जो ऐसा करते हैं...उनका मकसद क्या है... इसका जवाब जानने से पहले हमें भारतीय राजनीति के परिदृश्य को समझना होगा. यह स्पष्ट हो गया है कि भारतीय राजनीति में चुनाव में जीत ही मूल है..असल है..अफसोस की बात है कि यह स्थापित मानक हो गया है कि जो चुनाव में जीता, वही सही है. इस नीति का पालन तमाम राजनीतिक दल करते हैं. चुनावी जंग अब पोस्टर वार तथा नारेबाजी से आगे बढ़ कर हमारे-आपके मोबाइल और कंप्यूटर में पहुंच गयी है. हम आँखें खोलने के जब सबसे पहले मोबाइल ऑन करते हैं और नेट चालू करके सोशल साइट्स पर पहुंचते हैं तो इन अवसरों की ताक में रहने वाले लोग