बदल रहल बा बिहार

बदल रहल बा बिहार.....



सीवान स्टेशन पर उतरने से पहले...और उससे पहले भी...घर-दुकानों की दीवारों पर आपको विज्ञापनों की भरमार दिखाई देती है..कभी वक्त था जब इन दीवारों पर दाद-खाज-खुजली और बवासिर से छुटकारा दिलाने की दवाओं के अलावा बंगाली हकीम और हकीम सुलेमान के नाम सुनहरे अक्षरों में दिखाई देते थे...थोड़ा उन्नत विज्ञापन हुआ तो सीमेंट या टूथपेस्ट की शान में कसीदे लिखे दिखाई देते थे...लेकिन वो विज्ञापन बदल गये हैं...ठीक बिहार की तरह...


खुजली दूर करने के विज्ञापनों की जगह अमित सर के फिजिक्स क्लासेस ने ली है..फलां सीमेंट खरीदने के लाभ गिनाने की जगह अब जेईई मेन्स क्लियर करने के लिए किसी मोहन सर के मैथ्स ट्यूशन की बातें हैं। बिहार के दूर-दराज ग्रामीण इलाकों में वाकई में बदलाव दिखता है। पढ़ने-लिखने का जुनून बढ़ा है। दीवारों पर लिखी विज्ञापन की इबारतें, यूं तो अपने-आप में कोई श्वेत पत्र नहीं जिसकी निशानदेही पर बदलाव के बयार की पुष्टि की जा सके लेकिन, ये जनमानस के बदलते रवैये का जमीनी स्तर के दस्तावेज हैं। इसे कोई ठुकरा नहीं सकता। 

गाँवों में भी परिवर्तन दिखता है। पढ़ाई का क्रेज बढ़ा है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि पहले बिहारी बच्चे पढ़ते नहीं थे। लेकिन पढ़ाई लिखाई का प्रसार सामग्रिक नहीं था..सर्वत्र नहीं था..हर जगह नहीं दिखता था..देहात में जेईई मेन्स के संबंध में किसी गांव में इक्का-दुक्का बच्चा जाने तो जानें...आमतौर पर इससे सभी अनभिज्ञ थे...लेकिन अब ऐसा नहीं है..

ये सब कुछ एकाध वर्षों में नहीं हुआ है...इसमें टाइम लगा है...जरूरत से ज्यादा समय लग गया है।  जब देश के बाकी हिस्से समय के साथ विकास और उच्च शिक्षा के साथ कदमताल कर रहे थे..बिहार का देहात कहीं न कहीं पीछे छूट गया था। खेत-बथानी-घर की नाली को लेकर झगड़ा और खानदानी दुश्मनी, जीवन के अंग थे। सरकारी योजनाओं में सेंध लगाकर पैसे कमाने की तरकीब विद्वान होने की निशानी थी। लेकिन अब बिहारियों को भी लगने लगा है- बहुत हो चुका...अब बदले के पड़ी..सचमुच..बिहार बदल रहल बा। इसके लिए शिक्षा...उच्च शिक्षा का मार्ग सर्वश्रेष्ठ है..गये वो दिन जब आम बिहारी अरब में मजदूरी का अल्टीमेट लक्ष्य रखता था। अब तो उसे ऑल इंडिया एग्जामिनेशन में टॉप करना है। 

टिप्पणियाँ

  1. शिक्षा ही जीवन में आगे बढ़ने का एक मात्र माध्यम है। बदलाव शुरू होगा तो हालत सुधरेगी और फिर शायद काम की तलाश में लोगों को ऐसे न भटकना पड़े, अपनी जमीन से दूर, अपनों से दूर। इस बदलाव का स्वागत होना चाहिए।

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    1. बिल्कुल सही कह रहे आप। बदल रही मानसिकता ही बिहार के उत्थान की राह है।

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