चीन का मसलाः नकाब के पीछे छिपे चेहरों को बेनकाब करता

चीन का मसलाः नकाब के पीछे छिपे चेहरों को बेनकाब करता 


लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी हिमाकत के कुछ दिन बीत चुके हैं. हालांकि इन चंद दिनों में ही इस घटना ने भारत में नकाब के पीछे कई चेहरों को उजागर किया है. हालात को देख कर अचंभित हुए बिना नहीं रहा जा सकता. नकाब के पीछे छिपे चेहरों को देखने के लिए काफी दूर जाने की जरूरत नहीं है. इन्हें व्हाट्सऐप, फेसबुक या फिर टीवी के परदे पर ही देखा जा सकता है.


क्या विरोध के स्वर को कुचला जा रहा है?

एक आरोप लगता है कि अपनी ही सेना या सरकार या फिर देश पर उंगली उठाने वालों का विरोध करना, विरोध के स्वर को कुचलने की कोशिश है. यह कहा जाता है कि बोलने की आजादी छीनी जा रही है, कंठ अवरुद्ध किया जा रहा है. तो इसका जवाब है नहीं...वक्त की जरूरत जब समूचे देश को एकजुट होने की होती है तब ऐसे हालात में भारतीय सेना, भारतीय विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के बयान पर उंगली उठाना, कोई और कहानी कहता है. काउंटर आरोप यह लगता है कि यह सबकुछ राजनीति से प्रेरित है. भारत सरकार पर आत्मसमर्पण करने का आरोप लगाने के पीछे दरअसल सत्ता की लालसा ही है.

एक नेता को तो मानों मसला ही मिल गया है. वह रोजाना ट्वीट कर रहे हैं. लगातार दावा कर रहे हैं या फिर संकेत दे रहे हैं कि लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ झड़प में भारत को अधिक नुकसान हुआ, चीन ने भूमि पर कब्जा किया. उक्त नेता की पार्टी के दूसरे लोग टीवी डिबेट में उनके इस दावे को सही ठहराने की कोशिश करते हैं, सरकार को असफल साबित करने का प्रयास करते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारतीय राजनीति में अब देश की एकता-अखंडता का कोई मतलब नहीं रहा. नाजुक से नाजुक वक्त में भी राजनीतिक रोटियां सेंकने में परहेज नहीं हो सकता? केवल सत्ता हासिल करना ही एकमात्र राजनीतिक उद्देश्य रह गया है?

मौजूदा स्थिति ने कुछ अलगाववादी नेताओं को भी ऑक्सीजन सप्लाई किया है. कुछ इसे धारा 370 को फिर से लाने का जरिया मान रहे हैं तो कुछ कश्मीर को पाकिस्तान को दे देने का तरीका बता रहे हैं. इसके लिए वह चीन के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं. यानी कि सरकार को न केवल चीन का मुकाबला करना पड़ रहा है उसे भारत के भीतर भी कई जंगों से गुजरना पड़ रहा है.

लेकिन क्या इससे क्या मौजूदा सरकार को कोई दिक्कत हो रही है? सरसरी तौर पर देखें तो कोई दिक्कत नहीं हो रही. सत्ताधारी पार्टी का वर्तमान आधार इतना मजबूत है कि इस तरह के विरोध से उसका कुछ बिगड़ता नहीं दिखता. बल्कि कहा तो यह भी जा रहा है कि इससे उसके आधार में मजबूती ही आ रही है.

लेकिन इससे दुश्मन देश को यह जरूर समझ आ रहा है कि भारत एकजुट नहीं है. उसे अपनी कारगुजारियों में एक नयी ऊर्जा तो नहीं लेकिन एक जोश जरूर मिल रहा होगा.

भारत को भी इससे लाभ हो रहा है..और कुछ नहीं तो ढंके छिपे चेहरे अब शिद्दत से सामने आ रहे हैं. 

टिप्पणियाँ

  1. अभी सरकार और सेना के साथ खड़े न रहकर विरोधियों ने अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का ही सबूत दिया है। यह समय साथ खड़े रहने का है और अगर कुछ लोगों को यह समझ नहीं आता तो उनको समझ लेना चाईए कि वह अपना जनाधार खो देंगे। उनके ऐसे ही रवैये कर कारण वो अपना जनाधार पहले खो चुके हैं। हो सकता है सरकार की गलती हो लेकिन अभी मौके की नजाकत को समझते हुए सेना और सरकार के साथ रहना चाहिए। कमियाँ अगर हैं भी तो उन पर बात बाद में हो सकती है।

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    1. जी.. ऐसे ही कुछेक वक्त होते हैं जब इतिहास लिखा जाता है.. भविष्य में लोग पलट कर देखते हैं, किसने उस वक्त क्या कहा-किया था.

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    2. बढ़िया लेख है। विकास जी ने भी सही कहा। कमियों/ खामियों पर चर्चा जा समय अभी नही।
      ऐसी परिस्थितियों में पूरे देश का सुर एक होना चाहिए। ये कोई राजनीतिक मुद्दा नही बल्कि देश का सीमा विवाद है।

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    3. जी बिल्कुल.. नेताओं को समझना चाहिए कि वक्त बदल चुका है, अब जानकारी के अभाव से कोई नहीं भुगतता. लोग जानते--समझते हैं.

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