चीन के दांत‌ तोड़ने की जरूरत

गलवान घाटी में हुई घटना ने एक बार फिर चीन को ठोस जवाब देने की जरूरत को शिद्दत से सामने रखा है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान की बनिस्बत जब चीन के दुस्साहस की बात होती है तो कहीं न कहीं हम बातचीत और शांति की सोचने लगते हैं.
Chinese and Indian soldiers have 'scuffle' in Ladakhपूर्व में ऐसी कई घटनाएं हुईं हैं जब चीनी सैनिक भारत की सीमा में घुस आते हैं और भारतीय सैनिकों के साथ झड़प में जुट जाते हैं. कभी यह झड़प, धक्का मुक्की तो तो कभी पत्थरबाज़ी में तब्दील हो जाती है. वर्तमान में चीन भारतीय सीमा के भीतर सड़क बनाने से तिलमिलाया है. वह इस बात को मानने को तैयार नहीं कि भारत सीमा के पास सड़क बनाएं जिससे भारत को सामरिक फायदा हो. इसलिए वह रह रहकर दुस्साहस करता है.
लेकिन सवाल उठता है कि चीन के पत्थर और हाथापाई का जवाब भारत गोली से क्यों नहीं देता? वह आखिर क्यों संयम दिखाता रहा है. रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि चुप रहने से चीन का दुस्साहस लगातार बढ़ता जा रहा है. अगर पत्थर, कंटीले रॉड से ही लड़ना है तो क्या जरूरत है इतने बड़े रक्षा बजट की? गलवान में भारतीय सैनिकों ने करीब 45 चीनी सैनिकों को हताहत किया, गन की छूट रहती तो संख्या 450 रहती.
रक्षा विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि चीन के साथ युद्ध में अधिक नुकसान चीन का ही होगा. अधिक सामरिक क्षमता रहने पर भी चीन के सैनिकों के पास युद्ध का अनुभव नहीं है. जबकि कमोबेश हर भारतीय सैनिक बैटल हार्डेंड है. हम केवल 1962 न याद रखें उसके बाद के कई मोर्चों पर भारतीय सैनिकों ने चीनियों को धूल चटाया है.
मौजूदा सरकार ने पिछले कई मोर्चों पर अपनी लौह प्रतिबद्धता को दर्शाया है. इस बार भी ऐसा ही होगा, इसमें संदेह कम है.


टिप्पणियाँ

  1. आपकी बात सही है के कड़े कदम उठाये जाने की जरूरत है। उम्मीद है ये कदम उठाये जायेंगे।

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